आयादि गणित ,वास्तु बीज, विंशोत्तरी दशा, चंद्र नक्षत्र, लकी चार्म

🔴 आयादि गणित ,वास्तु बीज, विंशोत्तरी दशा, चंद्र नक्षत्र, लकी चार्म 🔱

स्थापत्य ग्रंथों में आयादि गणित को विशेष महत्व दिया गया है | वास्तव में आयादि गणित किसी भी 🏡 वास्तु का मूलाधार है | जातक का जन्म नक्षत्र जिसे कुंडली का बीज या मूल माना जाता है उसी को आधार बनाकर पिण्ड इत्यादि से उसका साम्य देखा जाता है | जन्म नक्षत्र पे आधारित उडु दशा या विंशोत्तरी दशा जिसे महर्षि पाराशर ने विशेष महत्व दिया है उसका आधार चंद्र नक्षत्र है | चन्द्रमा हमारे अवचेतन और मन पे विशेष प्रभाव रखता है तथा तन्त्र ग्रंथों में चन्द्र को देवी भाव से जोड़ा गया गया है तथा सूर्य को शिव तत्त्व से | बिन शक्ति के शिव शव के सामान रहते हैं इसलिए शीतल शक्ति के आधार बीज चन्द्र को विंशोत्तरी दशा में महत्वपूर्ण माना गया है और इसलिए उसका आधार नक्षत्र महत्वपूर्ण होता है |

आयादि गणित में इन कारकों के आधार पर निर्मित घर के गणितीय अनुपात (पिण्ड, क्षेत्रफल,पेरिमीटर) को बदला जा सकता है ताकि घर में रहने वाले मानव के इस विशेष बीज कारक (नक्षत्र) से 🏡 वास्तु के सभी अदृश्य आधार मेल खाते रहें | ये एक तरह कि रिवर्स इंजीनियरिंग विधि है जहाँ पहले तो गृहस्वामी के बीज को आधार लिया जाता है और फिर उसके आधार पर वास्तु के गणित को घटाया या बढाया जाता है | आयादि गणित से केवल यही सूत्र ही प्राप्त नहीं होते अपितु एक गृह की आयु भी निर्धारित की जाती है |

विवाह मेलापक में जहाँ केवल विवाह ही हो सकता है यहाँ 🏡 वास्तु आयादि के मेलापक में एक के गणित को बदल दिया जाता है | ये नितान्त महत्वपूर्ण है और विशेष भी है | आयादि गणित को समझने पर ज्ञात होता है की किस प्रकार भाग्य को वास्तु के आधार पर बदला जा सकता है |
अधिकतर नवीन ग्रंथों में नासमझी के कारण या जटिलता के कारण आयादि गणित को सम्मिलित ही नहीं किया गया है और कुछ पन्द्रहवी शताब्दी के पश्चात के ग्रंथों में केवल छे घटकों का ही प्रयोग किया गया है | श्रीमान गणपती स्थापती ने भी सोलह से अधिक घटकों से अनिभिज्ञता जताई है तथा केवल छे गुणों का ही प्रयोग किया है ,परन्तु वास्तु ग्रंथों के शोध के उपरान्त हमें २१ तक घटक प्राप्त हुए हैं |
नारद पुराण, वास्तुविद्या, मानसार, वशिष्ठ सहिंता, समरांगण सूत्रधार, मूहुर्त चिंतामणी, स्क्लाधिकार, शिल्परत्नं, अपराजित इत्यादि में इनके सूत्र मिलते हैं | परन्तु ये सूत्र पूर्ण नहीं हैं | दक्षिण भारतीय ग्रंथों में जैसे मयमत्तम, तन्त्रसमुच्च्य व् मनुष्यालय चन्द्रिका में भी सभी सूत्र नहीं है | अभी तक प्राप्त पांडुलिपियों से हमें २१ सूत्र प्राप्त हुए हैं |

इन्हें ज्योतिष के मेलापक की तरह २१ गुण भी कहा जा सकता है | वास्तु के अत्यंत प्राचीन ग्रंथों में ऐसे अनेक रहस्य भरे पड़े हैं जिनपर अभी तक कोई शोध नहीं हुई है और यह अत्यंत गंभीर विषय है | इस से भी हास्यास्पद स्थिति ये है की स्वयं को वास्तु के सुभट्ट विद्वान् कहलाने वाले अनेक जन आयादि गणित के विषय से पूर्णतः अनिभिज्ञ हैं |

आयादि गणित के किये आवश्यक नियम

इनके प्रयोग के लिए वास्तुक्षेत्र का अनिर्मित होना आवश्यक है अन्यथा इन्हें बिल्डिंग के कंस्ट्रक्शन में प्रयोग नहीं किया जा सकता है | परन्तु नवीन गृह निर्माण में तथा वाहन, फर्नीचर, द्वार, आभूषण, अस्त्र शस्त्र, मूर्ति, जीवित व् सजीव वस्तु इत्यादि में तो इन्हें प्रयोग में लाया जा सकता है |
मंदिर के निर्माण में मुख्य देवता के नक्षत्र को आधार बनाकर आयादि गणित को प्रयोग में लाया जाता है |

आयादि गणित में दिशा आय , व्यय , अंश , भूत, राशी इत्यादि का साम्य व्यक्ति से किया जाता है | इसमें गृह के मुखिया , उनकी पत्नी , पुत्र या पुत्री का साम्य भी किया जा सकता है तथा इस प्रकार से घर में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति के लिए गृह शुभफलदायक हो जाता है |

आयादि गणित

आयादि गणित केवल वास्तुक्षेत्र कें प्रयोग किया जाता हो ऐसा नहीं है इसे वाहन, वाद्य यन्त्र, मशीन, भोजन के लिए प्रयोग में आने वाले बर्तन,कुंड निर्माण, वेदी, विलास गृह, छत्र , मुकुट, कुंडल, फर्नीचर, द्वार, जलाशय, शय्या, वस्त्र, आभूषण, अस्त्र शस्त्र, मूर्ति, जीवित व् सजीव वस्तु, पताका इत्यादि सब पर प्रयोग किया जाता है |

ये इतना महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इस से जीवन में एक व्यक्ति के प्रयोग में आने वाली प्रत्येक वस्तु को उसके जन्म नक्षत्र के आधार पर बदला या बनाया जा सकता है | आयादि गणित प्रक्रिया की एक निश्चित वैज्ञानिक पृष्ठभूमि है और यही कारण है की कुछ चीज़ें हमारे जीवन में बिना कारण के अत्यंत हानिकारक हो जाती हैं तथा जिन्हें कई बार हम लकी चार्म समझते हैं वो वास्तव में हमारे नक्षत्र से मेल खाते आयादि ही होते हैं |

आयादि गणित इतना गूढतम विज्ञान है की सजीव जनों पर प्रयोग करने पर हम ये भी जान सकते हैं की कौन हमारे लिए अशुभ या शुभ है |
शारीरिक शास्त्र जिसे सामुद्रिक भी कहा जाता है ये उसका वैज्ञानिक लेखा जोखा है |

आयादि गणित हमारे भारतीय ऋषि मुनियों द्वारा रची गयी ऐसी प्रक्रिया है जिस से जीवन को एक नया आयाम दिया जा सकता है |


🔴 श्रीमहाराज्ञी अर्पण:अस्तु 🔱

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